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धारा- 101(हत्या)

धारा- 101(हत्या)
काल्पनिक चित्र

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा- 101


(हत्या) 

 इसमें इसके पश्चात् अपवादित दशाओं को छोड़कर, आपराधिक मानव वध हत्या है, -

(क) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो; या

(ख) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, वह ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो, जिससे अपराधी जानता हो कि उस व्यक्ति को मृत्यु कारित करना सम्भाव्य है, जिसको वह अपहानि कारित की गई है; या

(ग) यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, वह किसी व्यक्ति को शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से किया गया हो और वह शारीरिक क्षति, जिसके कारित करने का आशय हो, प्रकृति के साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त हो; या 


(घ) यदि कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, करने वाला व्यक्ति यह जानता हो कि वह कार्य इतना आसन्न संकट है कि पूरी अधिसम्भाव्यता है कि वह मृत्यु कारित कर ही देगा या ऐसी शारीरिक क्षति कारित कर ही देगा जिससे मृत्यु कारित होना सम्भाव्य है और वह मृत्यु कारित करने या पूर्वोक्त रूप की क्षति कारित करने की जोखिम उठाने के लिए किसी प्रतिहेतु के बिना ऐसा कार्य करे।

उदाहरण:- (क) राजेश को मार डालने के आशय से दिनेश उस पर गोली चलाता है, परिणामस्वरूप राजेश की मृत्यु हो जाती है। दिनेश हत्या करता है।

(ख) राजेन्द्र यह जानते हुए कि रहीम ऐसे रोग से ग्रस्त है कि सम्भाव्य है कि एक प्रहार उसकी मृत्यु कारित कर दे, शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से उस पर आघात करता है। उस प्रहार के परिणामस्वरूप रहीम की मृत्यु हो जाती है। राजेन्द्र हत्या का दोषी है, यद्यपि वह प्रहार किसी अच्छे स्वस्थ व्यक्ति की मृत्यु करने के लिए साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में पर्याप्त न होता। किन्तु यदि राजेन्द्र, यह न जानते हुए कि रहीम किसी रोग से ग्रस्त है, उस पर ऐसा प्रहार करता है, जिससे कोई अच्छा स्वस्थ व्यक्ति साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में न मरता, तो यहां, राजेन्द्र, यद्यपि शारीरिक क्षति कारित करने का उसका आशय हो, हत्या का दोषी नहीं है, यदि उसका आशय मृत्यु कारित करने का या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने का नहीं था, जिससे साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में मृत्यु कारित हो जाए।

(ग) मोहन को तलवार या लाठी से ऐसा घाव रहीम जानबूझकर करता है, जो साधारण नैसर्गिक अनुक्रम में किसी मनुष्य की मृत्यु कारित करने के लिए पर्याप्त है। परिणामस्वरूप मोहन की मृत्यु कारित हो जाती है, यहां रहीम हत्या का दोषी है, यद्यपि उसका आशय मोहन की मृत्यु कारित करने का न रहा हो।

(घ) मोहन किसी प्रतिहेतु के बिना व्यक्तियों के एक समूह पर भरी हुई तोप चलाता है और उनमें से एक का वध कर देता है। मोहन हत्या का दोषी है, यद्यपि किसी विशिष्ट व्यक्ति की मृत्यु कारित करने की उसकी पूर्वचिन्तित परिकल्पना न रही हो।


अपवाद 1.- आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी उस समय जब कि वह गम्भीर और अचानक प्रकोपन से आत्म संयम की शक्ति से वंचित हो, उस व्यक्ति की, जिसने कि वह प्रकोपन दिया था, मृत्यु कारित करे या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित करे।

परन्तु प्रकोपन -

(क) किसी व्यक्ति का वध करने या अपहानि करने के लिए अपराधी द्वारा प्रतिहेतु के रूप में ईप्सित न हो या स्वेच्छया प्रकोपित न हो।

(ख) किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो विधि के पालन में या लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।

(ग) किसी ऐसी बात द्वारा न दिया गया हो, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो।

उदाहरण:- प्रकोपन इतना गम्भीर और अचानक था या नहीं कि अपराध को हत्या की कोटि में जाने से बचा दे, यह तथ्य का प्रश्न है।

उदाहरण:- (क) पंकज द्वारा दिए गए प्रकोपन के कारण प्रदीप्त आवेश के असर में राम का, जो पंकज का बालक है, राजू जानबूझकर वध करता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन उस बालक द्वारा नहीं दिया गया था और उस बालक की मृत्यु उस प्रकोपन से किए गए कार्य को करने में दुर्घटना या दुर्भाग्य से नहीं हुई है।

(ख) राशिद को सददाम गम्भीर और अचानक प्रकोपन देता है। राशिद इस प्रकोपन से सददाम पर पिस्तौल चलाता है, जिसमें न तो उसका आशय राजेश का, जो समीप ही है किन्तु दृष्टि से बाहर है, वध करने का है, और न वह यह जानता है कि सम्भाव्य है कि वह राजेश का वध कर दे। राशिद, राजेश का वध करता है। यहां राशिद ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।


(ग) महेश द्वारा, जो एक बलिफ है, अमर को विधिपूर्वक गिरफ्तार किया जाता है। उस गिरफ्तारी के कारण अमर को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह महेश का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो एक लोक सेवक द्वारा उसकी शक्ति के प्रयोग में की गयी थी।

(घ) दिलीप के समक्ष, जो एक मजिस्ट्रेट है, साक्षी के रूप में राज उपसंजात होता है। दिलीप यह कहता है कि वह राज के अभिसाक्ष्य के एक शब्द पर भी विश्वास नहीं करता और यह कि राज ने शपथ भंग किया है। राज को इन शब्दों से अचानक आवेश आ जाता है और वह दिलीप का वध कर देता है। यह हत्या है।

(ङ) सोहन की नाक खींचने का प्रयत्न संदीप करता है। सोहन प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में ऐसा करने से रोकने के लिए संदीप को पकड़ लेता है। परिणामस्वरूप संदीप को अचानक और तीव्र आवेश आ जाता है और वह सोहन का वध कर देता है। यह हत्या है, क्योंकि प्रकोपन ऐसी बात द्वारा दिया गया था, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के प्रयोग में की गई थी।

(च) मोहन पर रमेश आघात करता है। मोहन को इस प्रकोपन से तीव्र क्रोध आ जाता है। सोहन, जो निकट ही खड़ा हुआ है, मोहन के क्रोध का लाभ उठाने और उससे रमेश का वध कराने के आशय से उसके हाथ में एक छुरी उस प्रयोजन के लिए दे देता है। मोहन उस छुरी से रमेश का वध कर देता है। यहां मोहन ने चाहे केवल आपराधिक मानव वध ही किया हो, किन्तु सोहन हत्या का दोषी है।

अपवाद 2.- आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि अपराधी, शरीर या संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार को सद्भावपूर्वक प्रयोग में लाते हुए विधि द्वारा उसे दी गई शक्ति का अतिक्रमण कर दे, और पूर्वचिन्तन बिना और ऐसी प्रतिरक्षा के प्रयोजन से जितनी अपहानि करना आवश्यक हो उससे अधिक अपहानि करने के किसी आशय के बिना उस व्यक्ति की मृत्यु कारित कर दे जिसके विरुद्ध वह प्रतिरक्षा का ऐसा अधिकार प्रयोग में ला रहा हो।


उदाहरण:- निसार को चाबुक मारने का प्रयत्न रामू करता है, किन्तु इस प्रकार नहीं कि निसार को घोर उपहति कारित हो निसार एक पिस्तौल निकाल लेता है। रामू हमले को चालू रखता है। निसार सद्भावपूर्वक यह विश्वास करते हुए की वह अपने को चाबुक लगाए जाने से किसी अन्य साधन द्वारा नहीं बचा सकता है, गोली से रामू का वध कर देता है। निसार ने हत्या नहीं की है, किन्तु केवल आपराधिक मानव वध किया है।

अपवाद 3.- आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह अपराधी ऐसा लोक सेवक होते हुए, या ऐसे लोक सेवक को मदद देते हुए, जो लोक न्याय की अग्रसरता में कार्य कर रहा है, उसे विधि द्वारा दी गई शक्ति से आगे बढ़ जाए, और कोई ऐसा कार्य करके जिसे वह विधिपूर्ण और ऐसे लोक सेवक के नाते उसके कर्तव्य के सम्यक् निर्वहन के लिए आवश्यक होने का सद्भावपूर्वक विश्वास करता है, और उस व्यक्ति के प्रति, जिसकी कि मृत्यु कारित की गई है, वैमनस्य के बिना मृत्यु कारित करे।

अपवाद 4. - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह मानव वध अचानक झगड़ा जनित आवेश की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में पूर्वचिन्तन बिना और अप्राधी द्वारा अनुचित लाभ उठाए बिना या क्रूरतापूर्ण या अप्रायिक रीति से कार्य किए बिना किया गया हो।

उदाहरण:- दशाओं में यह तत्वहीन है कि कौन पक्ष प्रकोपन देता है या पहला हमला करता है।

अपवाद 5. - आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है, यदि वह व्यक्ति जिसकी मृत्यु कारित की जाए, अ‌ट्ठारह वर्ष से अधिक आयु का होते हुए, अपनी सम्मति से मृत्यु होना सहन करे, या मृत्यु की जोखिम उठाए।


उदाहरण:- रामू को, जो एक बालक है, उकसाकर राजेश उससे स्वेच्छया आत्महत्या करवाता है। यहां, कम उम्र होने के कारण रामू अपनी मृत्यु के लिए सम्मति देने में असमर्थ था, इसलिए राजेश ने हत्या का दुष्प्रेरण किया है।

(IPC) की धारा 300 को (BNS) की धारा 101 में बदल दिया गया है। - अगर आप चाहे तो लोगो पर क्लिक करके देख सकते हैं।











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